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मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं | शाही शायरी
muTThi bhar logon ke hathon mein lakhon ki taqdiren hain

ग़ज़ल

मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं

निदा फ़ाज़ली

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मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं

आज और कल की बात नहीं है सदियों की तारीख़ यही है
हर आँगन में ख़्वाब हैं लेकिन चंद घरों में ताबीरें हैं

जब भी कोई तख़्त सजा है मेरा तेरा ख़ून बहा है
दरबारों की शान-ओ-शौकत मैदानों की शमशीरें हैं

हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी
गूँगी बहरी सारी भेड़ें चरवाहों की जागीरें हैं