मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे
मगर दिए की तरह मुझ को मो'तबर कर दे
बिखरते टूटते रिश्तों की उम्र ही कितनी
मैं तेरी शाम हूँ आ जा मिरी सहर कर दे
जुदाइयों की ये रातें तो काटनी होंगी
कहानियों को कोई कैसे मुख़्तसर कर दे
तिरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा हूँ
कि जैसा बच्चा किताबें इधर-उधर कर दे
'वसीम' किस ने कहा था कि यूँ ग़ज़ल कह कर
ये फूल जैसी ज़मीं आँसुओं से तर कर दे
ग़ज़ल
मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे
वसीम बरेलवी