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मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं | शाही शायरी
meri zindagi pe na muskura mujhe zindagi ka alam nahin

ग़ज़ल

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

शकील बदायुनी

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मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं

मिरा कुफ़्र हासिल-ए-ज़ोहद है मिरा ज़ोहद हासिल-ए-कुफ़्र है
मिरी बंदगी वो है बंदगी जो रहीन-ए-दैर-ओ-हरम नहीं

मुझे रास आएँ ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें
उन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

न वो शान-ए-जब्र-ए-शबाब है न वो रंग-ए-क़हर-ए-इताब है
दिल-ए-बे-क़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं

न फ़ना मिरी न बक़ा मिरी मुझे ऐ 'शकील' न ढूँढिए
मैं किसी का हुस्न-ए-ख़याल हूँ मिरा कुछ वजूद ओ अदम नहीं