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मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता | शाही शायरी
main apne KHwab se bichhDa nazar nahin aata

ग़ज़ल

मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता

वसीम बरेलवी

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मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता
तो इस सदी में अकेला नज़र नहीं आता

अजब दबाओ है उन बाहरी हवाओं का
घरों का बोझ भी उठता नज़र नहीं आता

मैं तेरी राह से हटने को हट गया लेकिन
मुझे तो कोई भी रस्ता नज़र नहीं आता

मैं इक सदा पे हमेशा को घर तो छोड़ आया
मगर पुकारने वाला नज़र नहीं आता

धुआँ भरा है यहाँ तो सभी की आँखों में
किसी को घर मिरा जलता नज़र नहीं आता

ग़ज़ल-सराई का दावा तो सब करे हैं 'वसीम'
मगर वो 'मीर' सा लहजा नज़र नहीं आता