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महसूस करोगे तो गुज़र जाओगे जाँ से | शाही शायरी
mahsus karoge to guzar jaoge jaan se

ग़ज़ल

महसूस करोगे तो गुज़र जाओगे जाँ से

जावेद सबा

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महसूस करोगे तो गुज़र जाओगे जाँ से
वो हाल है अंदर से कि बाहर है बयाँ से

वहशत का ये आलम कि पस-ए-चाक गरेबाँ
रंजिश है बहारों से उलझते हैं ख़िज़ाँ से

इक उम्र हुई उस के दर-ओ-बाम को तकते
आवाज़ कोई आई यहाँ से न वहाँ से

उठते हैं तो दिल बैठने लगता है सर-ए-बज़्म
बैठे हैं तो अब मर के ही उठेंगे यहाँ से

हर मोड़ पे वा हैं मिरी आँखों के दरीचे
अब देखना ये है कि वो जाता है कहाँ से

क्या नावक-ए-मिज़्गाँ से रखें ज़ख़्म की उम्मीद
चलते हैं यहाँ तीर किसी और कमाँ से

आँखों से अयाँ होता है आलम मिरे दिल का
मतलब है इस आलम को ज़बाँ से न बयाँ से