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क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा | शाही शायरी
kya baat hai ai jaan-e-suKHan baat kiye ja

ग़ज़ल

क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा

अब्दुल हमीद अदम

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क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा
माहौल पे नग़्मात की बरसात किए जा

दुनिया की निगाहों में बड़ी हिर्स भरी है
ना-अहल ज़माने से हिजाबात किए जा

नेकी का इरादा है तो फिर पूछना कैसा
दिन रात फ़क़ीरों की मुदारात किए जा

चलते रहें मदहोश पियालों की रविश पर
नादान सितारों को हिदायात किए जा

अल्लाह तिरा हुस्न करे और ज़ियादा
हम राह-नशीनों से मुलाक़ात किए जा

बन आए जवाबात तो मिल जाएँगे ख़ुद ही
ऐ दावर-ए-महशर तू सवालात किए जा

हस्ती ओ अदम क्या हैं ब-जुज़ जुम्बिश-ए-अबरू
ऐ जान-ए-किनायात इशारात किए जा

कहता है 'अदम' मुझ को हर इक गोशा-ए-हस्ती
आया है तो कुछ सैर-ए-ख़राबात किए जा