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कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं | शाही शायरी
koi monis nahin mera koi gham-KHwar nahin

ग़ज़ल

कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं

हीरानंद सोज़

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कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं
क्या मैं इतनी सी मुरव्वत का भी हक़दार नहीं

मेरे ही दम से जिन्हें अज़्मत-ए-किरदार मिली
वही कहते हैं कि मैं साहब-ए-किरदार नहीं

एहतिमाम-ए-रसन-ओ-दार है अब किस के लिए
मैं ख़तावार नहीं आप ख़तावार नहीं

मुंसिफ़-ए-शहर को दे कौन सवालों के जवाब
अब किसी शख़्स में भी जुरअत-ए-गुफ़्तार नहीं

सिलसिला ऊँचे मकानों का है ता-हद्द-ए-नज़र
शहर में फिर भी कहीं साया-ए-दीवार नहीं

क़ाफ़िले वाले कहाँ पाएँगे मंज़िल का निशाँ
जज़्बा-ए-शौक़ नहीं गर्मी-ए-रफ़्तार नहीं

क्या फ़क़त दाद है शाइ'र की रियाज़त का सिला
'सोज़' क्या मश्क़-ए-सुख़न काविश-ए-बेकार नहीं