कोई मिलता नहीं ख़ुदा की तरह
फिरता रहता हूँ मैं दुआ की तरह
ग़म तआक़ुब में हैं सज़ा की तरह
तू छुपा ले मुझे ख़ता की तरह
है मरीज़ों में तज़्किरा मेरा
आज़माई हुई दवा की तरह
हो रहीं हैं शहादतें मुझ में
और मैं चुप हूँ कर्बला की तरह
जिस की ख़ातिर चराग़ बनता हूँ
घूरता है वही हवा की तरह
वक़्त के गुम्बदों में रहता हूँ
एक गूँजी हुई सदा की तरह
![koi milta nahin KHuda ki tarah](/images/pic02.jpg)
ग़ज़ल
कोई मिलता नहीं ख़ुदा की तरह
फ़हमी बदायूनी