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किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं | शाही शायरी
kis ki talash hai hamein kis ke asar mein hain

ग़ज़ल

किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं
जब से चले हैं घर से मुसलसल सफ़र में हैं

सारे तमाशे ख़त्म हुए लोग जा चुके
इक हम ही रह गए जो फ़रेब-ए-सहर में हैं

ऐसी तो कोई ख़ास ख़ता भी नहीं हुई
हाँ ये समझ लिया था कि हम अपने घर में हैं

अब के बहार देखिए क्या नक़्श छोड़ जाए
आसार बादलों के न पत्ते शजर में हैं

तुझ से बिछड़ना कोई नया हादसा नहीं
ऐसे हज़ारों क़िस्से हमारी ख़बर में हैं

'आशुफ़्ता' सब गुमान धरा रह गया यहाँ
कहते न थे कि ख़ामियाँ तेरे हुनर में हैं