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ख़ुश्क पुतली से कोई सूरत न ठहराई गई | शाही शायरी
KHushk putli se koi surat na Thahrai gai

ग़ज़ल

ख़ुश्क पुतली से कोई सूरत न ठहराई गई

ख़ुर्शीद रिज़वी

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ख़ुश्क पुतली से कोई सूरत न ठहराई गई
आँख से आँसू गए मेरी कि बीनाई गई

सुब्ह-दम क्या ढूँडते हो शब-रवों के नक़्श-ए-पा
जब से अब तक बार-हा मौज-ए-सबा आई गई

रो रहा हूँ हर पुरानी चीज़ को पहचान कर
जाने किस की रूह मेरे रूप में लाई गई

मुतमइन हो देख कर तुम रंग-ए-तस्वीर-ए-हयात
फिर वो शायद वो नहीं जो मुझ को दिखलाई गई

चलते चलते कान में किस की सदा आने लगी
यूँ लगा जैसे मिरी बरसों की तन्हाई गई

हम कि अपनी राह का पत्थर समझते हैं उसे
हम से जाने किस लिए दुनिया न ठुकराई गई