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ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता | शाही शायरी
KHayal us ka kahan se kahan nahin jata

ग़ज़ल

ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

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ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता
वहाँ भी जाए कि जिस जा गुमाँ नहीं जाता

बस अपने बाग़ में महव-ए-ख़िराम रहता है
कि ख़ुद से दूर वो सर्व-ए-रवाँ नहीं जाता

हिजाब उस के मिरे बीच अगर नहीं कोई
तो क्यूँ ये फ़ासला-ए-दरमियाँ नहीं जाता

कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता

न जाने उस की ज़बाँ में है क्या असर 'फ़र्रुख़'
कि उस से हो के कोई बद-गुमाँ नहीं जाता