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ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई | शाही शायरी
KHamushi se hui fughan se hui

ग़ज़ल

ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई

अदा जाफ़री

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ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
इब्तिदा रंज की कहाँ से हुई

कोई ताइर इधर नहीं आता
कैसी तक़्सीर इस मकाँ से हुई

मौसमों पर यक़ीन क्यूँ छोड़ा
बद-गुमानी तो साएबाँ से हुई

बे-निहायत समुंदरों का सफ़र
गुफ़्तुगू सिर्फ़ बादबाँ से हुई

ये जो उलझी हुई कहानी है
मो'तबर हर्फ़-ए-राएगाँ से हुई

दिल की आबादियों को पूछो हो
रौशनी बर्क़-ए-बे-अमाँ से हुई

तिश्नगी बेबसी लब-ए-दरिया
मेरी पहचान ही वहाँ से हुई

इतनी उजली न थी ये राहगुज़र
नक़्श-ए-पा-ए-बला-कशाँ से हुई