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कौन सी दुनिया में हूँ किस की निगहबानी में हूँ | शाही शायरी
kaun si duniya mein hun kis ki nigahbani mein hun

ग़ज़ल

कौन सी दुनिया में हूँ किस की निगहबानी में हूँ

कौसर मज़हरी

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कौन सी दुनिया में हूँ किस की निगहबानी में हूँ
ज़िंदगी है सख़्त मुश्किल फिर भी आसानी में हूँ

चाँद है पानी में या भूले हुए चेहरे का अक्स
साहिल-ए-दरिया पे देखो मैं भी हैरानी में हूँ

क़तरा-ए-शबनम के भी एहसान याद आने लगे
होंट सूखे जा रहे हैं जब से मैं पानी में हूँ

भूली-बिसरी याद इक आई है मेरे दिल के पास
मैं भी गोया आज कल इस दिल की दरबानी में हूँ

ऐ ख़िज़ाँ कुछ देर को ये फ़स्ल-ए-गुल जीने तो दे
आज-कल मसरूफ़ मैं भी चाक-दामानी में हूँ