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कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो | शाही शायरी
kabhi surat jo mujhe aa ke dikha jate ho

ग़ज़ल

कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

ग़ुलाम भीक नैरंग

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कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो
दिन मिरी ज़ीस्त के कुछ और बढ़ा जाते हो

इक झलक तुम जो लब-ए-बाम दिखा जाते हो
दिल पे इक कौंदती बिजली सी गिरा जाते हो

मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब
ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो आ जाते हो

ताज़ा कर जाते हो तुम दिल में पुरानी यादें
ख़्वाब-ए-शीरीं से तमन्ना को जगा जाते हो

इतनी हम को भी दिखाते हो मसीहा-नफ़सी
हसरत-ए-मुर्दा को आ आ के जिला जाते हो

निगह-ए-लुत्फ़ में जादू है तुम्हारी जानाँ
सारे शिकवे-गिले इक पल में भुला जाते हो

शोला-ए-तूर से तू वादी-ए-ऐमन ही जला
तुम जहाँ आते हो इक आग लगा जाते हो

है तो 'नैरंग' वही इश्क़ का रोना-धोना
इन्ही बातों में नया रंग दिखा जाते हो