EN اردو
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे | शाही शायरी
kab tak dil ki KHair manaen kab tak rah dikhlaoge

ग़ज़ल

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

;

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे

बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे

अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है हम से क्या मन्वाओगे

किस ने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे

'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना थी
तुम इस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे