EN اردو
जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत | शाही शायरी
jo aashiq ho use sahra mein chal jaane se kya nisbat

ग़ज़ल

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

;

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत
जुज़ अपनी धूल उड़ाना और वीराने से क्या निस्बत

नहीं पहुँचें बुलबुलों की पुख़्तगी को ख़ाम परवाने
जो दाएम सुलगें उन को पल में जल जाने से क्या निस्बत

वो ज़ुल्फ़ों से न गुज़रे बल्कि अपने जी से टल जावे
कहो मेरे दिल-ए-सद-चाक को शाने से क्या निस्बत