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झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं | शाही शायरी
jhuki jhuki si nazar be-qarar hai ki nahin

ग़ज़ल

झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं

कैफ़ी आज़मी

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झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं

तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता
मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं

वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है
उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं

तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ए'तिबार है कि नहीं