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जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई | शाही शायरी
jawani kya hui ek raat ki kahani hui

ग़ज़ल

जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई

उबैदुल्लाह अलीम

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जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
बदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई

कोई अज़ीज़ नहीं मा-सिवा-ए-ज़ात हमें
अगर हुआ है तो यूँ जैसे ज़िंदगानी हुई

न होगी ख़ुश्क कि शायद वो लौट आए फिर
ये किश्त गुज़रे हुए अब्र की निशानी हुई

तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ
वो बात भूल भी जाओ जो आनी-जानी हुई

मैं उस को भूल गया हूँ वो मुझ को भूल गया
तो फिर ये दिल पे क्यूँ दस्तक सी ना-गहानी हुई

कहाँ तक और भला जाँ का हम ज़ियाँ करते
बिछड़ गया है तो ये उस की मेहरबानी हुई