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जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है | शाही शायरी
jagta hun main ek akela duniya soti hai

ग़ज़ल

जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है

शहरयार

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जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है
कितनी वहशत हिज्र की लम्बी रात में होती है

यादों के सैलाब में जिस दम मैं घिर जाता हूँ
दिल-दीवार उधर जाने की ख़्वाहिश होती है

ख़्वाब देखने की हसरत में तन्हाई मेरी
आँखों की बंजर धरती में नींदें बोती है

ख़ुद को तसल्ली देना कितना मुश्किल होता है
कोई क़ीमती चीज़ अचानक जब भी खोती है

उम्र-सफ़र जारी है बस ये खेल देखने को
रूह बदन का बोझ कहाँ तक कब तक ढोती है