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इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह | शाही शायरी
ittifaq apni jagah KHush-qismati apni jagah

ग़ज़ल

इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह

अनवर शऊर

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इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह

कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
इख़्तियार अपनी जगह है बेबसी अपनी जगह

कुछ न कुछ सच्चाई होती है निहाँ हर बात में
कहने वाले ठीक कहते हैं सभी अपनी जगह

सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह

दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'
दोस्ती अपनी जगह है शाएरी अपनी जगह