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इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी | शाही शायरी
ishq saman bhi hai be-sar-o-samani bhi

ग़ज़ल

इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी

सऊद उस्मानी

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इश्क़ सामान भी है बे-सर-ओ-सामानी भी
उसी दरवेश के क़दमों में है सुल्तानी भी

हम भी वैसे न रहे दश्त भी वैसा न रहा
उम्र के साथ ही ढलने लगी वीरानी भी

वो जो बर्बाद हुए थे तिरे हाथों वही लोग
दम-ब-ख़ुद देख रहे हैं तिरी हैरानी भी

आख़िर इक रोज़ उतरनी है लिबादों की तरह
तन-ए-मल्बूस! ये पहनी हुई उर्यानी भी

ये जो मैं इतनी सहूलत से तुझे चाहता हूँ
दोस्त इक उम्र में मिलती है ये आसानी भी