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इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम | शाही शायरी
ishq ka naghma junun ke saz par gate hain hum

ग़ज़ल

इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम

अली सरदार जाफ़री

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इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम
अपने ग़म की आँच से पत्थर को पिघलाते हैं हम

जाग उठते हैं तो सूली पर भी नींद आती नहीं
वक़्त पड़ जाए तो अँगारों पे सो जाते हैं हम

ज़िंदगी को हम से बढ़ कर कौन कर सकता है प्यार
और अगर मरने पे आ जाएँ तो मर जाते हैं हम

दफ़्न हो कर ख़ाक में भी दफ़्न रह सकते नहीं
लाला-ओ-गुल बन के वीरानों पे छा जाते हैं हम

हम कि करते हैं चमन में एहतिमाम-ए-रंग-ओ-बू
रू-ए-गेती से नक़ाब-ए-हुस्न सरकाते हैं हम

अक्स पड़ते ही सँवर जाते हैं चेहरे के नुक़ूश
शाहिद-ए-हस्ती को यूँ आईना दिखलाते हैं हम

मय-कशों को मुज़्दा सदियों के प्यासों को नवेद
अपनी महफ़िल अपना साक़ी ले के अब आते हैं हम