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इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम | शाही शायरी
in mausamon mein nachte gate rahenge hum

ग़ज़ल

इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम

अहमद मुश्ताक़

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इन मौसमों में नाचते गाते रहेंगे हम
हँसते रहेंगे शोर मचाते रहेंगे हम

लब सूख क्यूँ न जाएँ गला बैठ क्यूँ न जाए
दिल में हैं जो सवाल उठाते रहेंगे हम

अपनी रह-ए-सुलूक में चुप रहना मना है
चुप रह गए तो जान से जाते रहेंगे हम

निकले तो इस तरह कि दिखाई नहीं दिए
डूबे तो देर तक नज़र आते रहेंगे हम

दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम