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हुस्न मरहून-ए-जोश-ए-बादा-ए-नाज़ | शाही शायरी
husn marhun-e-josh-e-baada-e-naz

ग़ज़ल

हुस्न मरहून-ए-जोश-ए-बादा-ए-नाज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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हुस्न मरहून-ए-जोश-ए-बादा-ए-नाज़
इश्क़ मिन्नत-कश-ए-फ़ुसून-ए-नियाज़

दिल का हर तार लर्ज़िश-ए-पैहम
जाँ का हर रिश्ता वक़्फ़-ए-सोज़-ओ-गुदाज़

सोज़िश-ए-दर्द-ए-दिल किसे मालूम
कौन जाने किसी के इश्क़ का राज़

मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है
मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़

हो चुका इश्क़ अब हवस ही सही
क्या करें फ़र्ज़ है अदा-ए-नमाज़

तू है और इक तग़ाफ़ुल-ए-पैहम
मैं हूँ और इंतिज़ार-ए-बे-अंदाज़

ख़ौफ़-ए-नाकामी-ए-उमीद है 'फ़ैज़'
वर्ना दिल तोड़ दे तिलिस्म-ए-मजाज़