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हुआ करे अगर उस को कोई गिला होगा | शाही शायरी
hua kare agar usko koi gila hoga

ग़ज़ल

हुआ करे अगर उस को कोई गिला होगा

अनवर अंजुम

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हुआ करे अगर उस को कोई गिला होगा
ज़बाँ खुली है तो फिर कुछ तो फ़ैसला होगा

कभी कभी तो ये दिल में सवाल उठता है
कि इस जुदाई में क्या उस ने पा लिया होगा

वो गर्म गर्म नफ़स कैसे ठहरते होंगे
अब इन शबों को वो कैसे गुज़ारता होगा

कभी जो गुज़रूँ तिरे शहर से तो सोचता हूँ
कि इस ज़मीन पे क्या क्या क़दम पड़ा होगा

ख़ुशा वो रौनक़-ए-हंगामा-ए-विसाल अब तो
यक़ीन ही नहीं आता कि यूँ हुआ होगा

वो खोई खोई वफ़ाओं का भूला-बिसरा गीत
कभी तो उस के शबिस्ताँ में भी गया होगा

निकल पड़े थे यूँही हम तो एक दिन घर से
किसे ख़बर थी कि यूँ तुम से सामना होगा

कभी उठे ही नहीं हम तलाश को वर्ना
कोई तो शहर में अपना भी आश्ना होगा

ये हौल-नाक ख़मोशी जुदाई का आशोब
मैं सोचता हूँ कि यूँही रहा तो क्या होगा

किस आरज़ू में उठे किस तरफ़ चले 'अंजुम'
इस आधी रात में अब किस का दर खुला होगा