EN اردو
हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की | शाही शायरी
hirs daulat ki na izz o jah ki

ग़ज़ल

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की

आसी ग़ाज़ीपुरी

;

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की
बस तमन्ना है दिल-ए-आगाह की

दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की

खिंच गए कनआँ से यूसुफ़ मिस्र को
पूछिए हज़रत से क़ुव्वत चाह की

बस सुलूक उस का है मंज़िल उस की है
उस के दिल तक जिस ने अपनी राह की

वाइज़ो कैसा बुतों का घूरना
कुछ ख़बर है सुम्मा-वजहुल्लाह की

याद आई ताक़-ए-बैतुल्लाह में
बैत-ए-अबरू उस बुत-ए-दिल-ख़्वाह की

राह-ए-हक़ की है अगर 'आसी' तलाश
ख़ाक-ए-रह हो मर्द-ए-हक़-आगाह की