EN اردو
हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते | शाही शायरी
hijr karte ya koi wasl guzara karte

ग़ज़ल

हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते

उबैदुल्लाह अलीम

;

हिज्र करते या कोई वस्ल गुज़ारा करते
हम बहर-हाल बसर ख़्वाब तुम्हारा करते

एक ऐसी भी घड़ी इश्क़ में आई थी कि हम
ख़ाक को हाथ लगाते तो सितारा करते

अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते

मेहव-ए-आराइश-ए-रुख़ है वो क़यामत सर-ए-बाम
आँख अगर आईना होती तो नज़ारा करते

एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते

जब है ये ख़ाना-ए-दिल आप की ख़ल्वत के लिए
फिर कोई आए यहाँ कैसे गवारा करते

कौन रखता है अँधेरे में दिया आँख में ख़्वाब
तेरी जानिब ही तिरे लोग इशारा करते

ज़र्फ़-ए-आईना कहाँ और तिरा हुस्न कहाँ
हम तिरे चेहरे से आईना सँवारा करते