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हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे | शाही शायरी
hawaen tez thin ye to faqat bahane the

ग़ज़ल

हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे
सफ़ीने यूँ भी किनारे पे कब लगाने थे

ख़याल आता है रह रह के लौट जाने का
सफ़र से पहले हमें अपने घर जलाने थे

गुमान था कि समझ लेंगे मौसमों का मिज़ाज
खुली जो आँख तो ज़द पे सभी ठिकाने थे

हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे

तलाश जिन को हमेशा बुज़ुर्ग करते रहे
न जाने कौन सी दुनिया में वो ख़ज़ाने थे

चलन था सब के ग़मों में शरीक रहने का
अजीब दिन थे अजब सर-फिरे ज़माने थे