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हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए | शाही शायरी
hawa mein phirte ho kya hirs aur hawa ke liye

ग़ज़ल

हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए

बहादुर शाह ज़फ़र

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हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ग़ुरूर छोड़ दो ऐ ग़ाफ़िलो ख़ुदा के लिए

गिरा दिया है हमें किस ने चाह-ए-उल्फ़त में
हम आप डूबे किसी अपने आश्ना के लिए

जहाँ में चाहिए ऐवान ओ क़स्र शाहों को
ये एक गुम्बद-ए-गर्दूं है बस गदा के लिए

वो आईना है कि जिस को है हाजत-ए-सीमाब
इक इज़्तिराब है काफ़ी दिल-ए-सफ़ा के लिए

तपिश से दिल का हो क्या जाने सीने में क्या हाल
जो तेरे तीर का रौज़न न हो हवा के लिए

तबीब-ए-इश्क़ की दुक्काँ में ढूँडते फिरते
ये दर्दमंद-ए-मोहब्बत तिरी दवा के लिए

जो हाथ आए 'ज़फ़र' ख़ाक-पा-ए-'फ़ख़रूद्दीन'
तो मैं रखूँ उसे आँखों के तूतिया के लिए