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हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस | शाही शायरी
har-chand meri quwwat-e-guftar hai mahbus

ग़ज़ल

हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस

साहिर लुधियानवी

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हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती

मामूरा-ए-एहसास में है हश्र सा बरपा
इंसान की तज़लील गवारा नहीं होती

नालाँ हूँ मैं बेदारी-ए-एहसास के हाथों
दुनिया मिरे अफ़्कार की दुनिया नहीं होती

बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा
हर चीज़ सज़ा-वार-ए-नज़ारा नहीं होती

फ़ितरत की मशिय्यत भी बड़ी चीज़ है लेकिन
फ़ितरत कभी बे-बस का सहारा नहीं होती