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हम ने सब शेर में सँवारे थे | शाही शायरी
humne sab sher mein sanware the

ग़ज़ल

हम ने सब शेर में सँवारे थे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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हम ने सब शेर में सँवारे थे
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे

रंग-ओ-ख़ुशबू के हुस्न-ओ-ख़ूबी के
तुम से थे जितने इस्तिआरे थे

तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे

जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए
जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे

मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे

उम्र-ए-जावेद की दुआ करते
'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे