EN اردو
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की | शाही शायरी
humne KHud apni rahnumai ki

ग़ज़ल

हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की

राहत इंदौरी

;

हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की
और शोहरत हुई ख़ुदाई की

मैं ने दुनिया से मुझ से दुनिया ने
सैकड़ों बार बेवफ़ाई की

खुले रहते हैं सारे दरवाज़े
कोई सूरत नहीं रिहाई की

टूट कर हम मिले हैं पहली बार
ये शुरूआ'त है जुदाई की

सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को
अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की

मंज़िलें चूमती हैं मेरे क़दम
दाद दीजे शिकस्ता-पाई की

ज़िंदगी जैसे-तैसे काटनी है
क्या भलाई की क्या बुराई की

इश्क़ के कारोबार में हम ने
जान दे कर बड़ी कमाई की

अब किसी की ज़बाँ नहीं खुलती
रस्म जारी है मुँह-भराई की