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हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को | शाही शायरी
hairat se takta hai sahra barish ke nazrane ko

ग़ज़ल

हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को

सऊद उस्मानी

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हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
कितनी दूर से आई है ये रेत से हाथ मिलाने को

सात सुरों की लहरों पे हलकोरे लेते फूल से हैं
इक मदहोश फ़ज़ा सुनती है इक चिड़िया के गाने को

बोलती हो तो यूँ है जैसे फूल पे तितली डोलती हो
तुम ने कैसा सब्ज़ किया है और कैसे वीराने को

लेकिन उन से और तरह की रौशनियाँ सी फूट पड़ीं
आँसू तो मिल कर निकले थे आँख के रंग छुपाने को

जैसे कोई जिस्म के अंदर दीवारें सी तोड़ता है
देखो इस पागल वहशी को रोको इस दीवाने को