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गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी | शाही शायरी
galiyan tanKHwah Thahri hai agar baT jaegi

ग़ज़ल

गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी

बहादुर शाह ज़फ़र

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गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी
आशिक़ों के घर मिठाई लब शकर बट जाएगी

रू-ब-रू गर होगा यूसुफ़ और तू आ जाएगा
उस की जानिब से ज़ुलेख़ा की नज़र बट जाएगी

रहज़नों में नाज़-ओ-ग़म्ज़ा की ये जिंस-ए-दीन-ओ-दिल
जूँ मता-ए-बुर्दा आख़िर हम-दिगर बट जाएगी

होगा क्या गर बोल उट्ठे ग़ैर बातों में मिरी
फिर तबीअत मेरी ऐ बेदाद गर बट जाएगी

दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
बाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बट जाएगी

कर ले ऐ दिल जान को भी रंज-ओ-ग़म में तू शरीक
ये जो मेहनत तुझ पे है कुछ कुछ मगर बट जाएगी

मूँग छाती पे जो दलते हैं किसी की देखना
जूतियों में दाल उन की ऐ 'ज़फ़र' बट जाएगी