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फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ | शाही शायरी
fikr-e-dildari-e-gulzar karun ya na karun

ग़ज़ल

फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ
ज़िक्र-ए-मुर्ग़ान-ए-गिरफ़्तार करूँ या न करूँ

क़िस्सा-ए-साज़िश-ए-अग़्यार कहूँ या न कहूँ
शिकवा-ए-यार-ए-तरह-दार करूँ या न करूँ

जाने क्या वज़्अ है अब रस्म-ए-वफ़ा की ऐ दिल
वज़-ए-देरीना पे इसरार करूँ या न करूँ

जाने किस रंग में तफ़्सीर करें अहल-ए-हवस
मदह-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार करूँ या न करूँ

यूँ बहार आई है इमसाल कि गुलशन में सबा
पूछती है गुज़र इस बार करूँ या न करूँ

गोया इस सोच में है दिल में लहू भर के गुलाब
दामन ओ जेब को गुलनार करूँ या न करूँ

है फ़क़त मुर्ग़-ए-गज़ल-ख़्वाँ कि जिसे फ़िक्र नहीं
मो'तदिल गर्मी-ए-गुफ़्तार करूँ या न करूँ