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एक मुश्किल सी बहर-तौर बनी होती है | शाही शायरी
ek mushkil si bahar-taur bani hoti hai

ग़ज़ल

एक मुश्किल सी बहर-तौर बनी होती है

अब्बास ताबिश

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एक मुश्किल सी बहर-तौर बनी होती है
तुझ से बाज़ आएँ तो फिर ख़ुद से ठनी होती है

कुछ तो ले बैठती है अपनी शिकस्ता-पाई
और कुछ राह में छाँव भी घनी होती है

मेरे सीने से ज़रा कान लगा कर देखो
साँस चलती है कि ज़ंजीर-ज़नी होती है

आबला-पाई भी होती है मुक़द्दर अपना
सर पे अफ़्लाक की चादर भी तनी होती है

दूध की नहर निकाली है ग़मों से हम ने
हम बता सकते हैं क्या कोह-कनी होती है

आँख तो खुलती है किरनों की तलब में लेकिन
ज़ेब-ए-मिज़्गाँ किसी नेज़े की अनी होती है

दश्त-ए-ग़ुर्बत ही पे मौक़ूफ़ नहीं है 'ताबिश'
अब तो घर में भी ग़रीब-उल-वतनी होती है