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एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा | शाही शायरी
ehsas ka qissa hai sunana to paDega

ग़ज़ल

एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

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एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा
हर ज़ख़्म को अब फूल बनाना तो पड़ेगा

मुमकिन है मिरे शे'र में हर राज़ हो लेकिन
इक राज़ पस-ए-शे'र छुपाना तो पड़ेगा

आँखों के जज़ीरों पे हैं नीलम की क़तारें
ख़्वाबों का जनाज़ा है उठाना तो पड़ेगा

चेहरे पे कई चेहरे लिए फिरती है दुनिया
अब आइना दुनिया को दिखाना तो पड़ेगा

ज़ेहनों पे मुसल्लत हैं सियह सोच के बादल
ज़ुल्मत में दिया दिल का जलाना तो पड़ेगा

वो दुश्मन-ए-जाँ जान से प्यारा भी हमें है
रूठे वो अगर उस को मनाना तो पड़ेगा

रिश्तों का यही वस्फ़ है 'ज़ाकिर' की नज़र में
कमज़ोर सही रिश्ता निभाना तो पड़ेगा