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दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी | शाही शायरी
dost kya KHud ko bhi pursish ki ijazat nahin di

ग़ज़ल

दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी
दिल को ख़ूँ होने दिया आँख को ज़हमत नहीं दी

हम भी उस सिलसिला-ए-इश्क़ में बैअत हैं जिसे
हिज्र ने दुख न दिया वस्ल ने राहत नहीं दी

हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में
एक शाम उस को भी हालात ने मोहलत नहीं दी

आजिज़ी बख़्शी गई तमकनत-ए-फ़क़्र के साथ
देने वाले ने हमें कौन सी दौलत नहीं दी

बेवफ़ा दोस्त कभी लौट के आए तो उन्हें
हम ने इज़हार-ए-नदामत की अज़िय्यत नहीं दी

दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एक ने अज्र दिया एक ने उजरत नहीं दी