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दिल शहर-ए-तहय्युर है कि वो मम्लिकत-आरा | शाही शायरी
dil shahr-e-tahayyur hai ki wo mamlikat-ara

ग़ज़ल

दिल शहर-ए-तहय्युर है कि वो मम्लिकत-आरा

सय्यद अमीन अशरफ़

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दिल शहर-ए-तहय्युर है कि वो मम्लिकत-आरा
क्या सल्तनत-ए-बल्ख़-ओ-समरक़ंद-ओ-बुख़ारा

मुबहम है तिरी चश्म-ए-करम देख तो यूँ देख
जिस तरह लिपट जाए सितारे से सितारा

इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताब
इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा

कुछ दरख़ुर-ए-जाँ है तो यही कुंज-ए-मुलाक़ात
ये आलम-ए-ख़ाकी न हमारा न तुम्हारा

ज़ंजीर-ए-गिराँ-बार है ये इशरत-ए-साहिल
बहता है तो रुकता ही नहीं वक़्त का धारा

जुज़ हसरत-ए-बे-नाम नहीं गर्दिश-ए-ख़ूँ अब
चाँदी जो हुए बाल मिला ज़ब्त का यारा