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दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे | शाही शायरी
dil ko miTa ke dagh-e-tamanna diya mujhe

ग़ज़ल

दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे

जिगर मुरादाबादी

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दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे
ऐ इश्क़ तेरी ख़ैर हो ये क्या दिया मुझे

महशर में बात भी न ज़बाँ से निकल सकी
क्या झुक के उस निगाह ने समझा दिया मुझे

मैं और आरज़ू-ए-विसाल-ए-परी-रुख़ाँ
इस इश्क़-ए-सादा-लौह ने बहका दिया मुझे

हर बार यास हिज्र में दिल की हुई शरीक
हर मर्तबा उम्मीद ने धोका दिया मुझे

अल्लाह रे तेग़-ए-इश्क़ की बरहम-मज़ाहियाँ
मेरे ही ख़ून-ए-शौक़ में नहला दिया मुझे

ख़ुश हूँ कि हुस्न-ए-यार ने ख़ुद अपने हाथ से
इक दिल-फ़रेब दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे

दुनिया से खो चुका है मिरा जोश-ए-इंतिज़ार
आवाज़-ए-पाए-ए-यार ने चौंका दिया मुझे

दावा किया था ज़ब्त-ए-मोहब्बत का ऐ 'जिगर'
ज़ालिम ने बात बात पे तड़पा दिया मुझे