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देख लो शौक़-ए-ना-तमाम मिरा | शाही शायरी
dekh lo shauq-e-na-tamam mera

ग़ज़ल

देख लो शौक़-ए-ना-तमाम मिरा

मोमिन ख़ाँ मोमिन

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देख लो शौक़-ए-ना-तमाम मिरा
ग़ैर ले जाए है पयाम मिरा

बे-असर है फ़ुग़ान-ए-ख़ून-आलूद
क्यूँ न होए ख़राब काम मिरा

आतिशीं ख़ू से आरज़ू-ए-विसाल
पक गया अब ख़याल-ए-ख़ाम मिरा

देखना कसरत-ए-बला-नोशी
कासा-ए-आसमाँ है जाम मिरा

रुत्बा उफ़्तादगी का देखो है
अर्श के भी परे मक़ाम मिरा

किस सनम को छुड़ा दिया वाइ'ज़
ले ख़ुदा तुझ से इंतिक़ाम मिरा

हो के यूसुफ़ जो दिल चुराते हो
कौन हो जाएगा ग़ुलाम मिरा

उस लब-ए-लाल की शिकायत है
क्यूँकि रंगीं न हो कलाम मिरा

तू ने रुस्वा क्या मुझे अब तक
कोई भी जानता था नाम मिरा

ज़ानू-ए-बुत पे जान दी देखा
'मोमिन' अंजाम-ओ-इख़्तिताम मिरा

बंदगी काम आ रही आख़िर
मैं न कहता था क्यूँ सलाम मिरा