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चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ | शाही शायरी
chup bhi ho bak raha hai kya waiz

ग़ज़ल

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़

अमीर मीनाई

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चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़
मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़

तेरे कहने से रिंद जाएँगे
ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़

अल्लाह अल्लाह ये किब्र और ये ग़ुरूर
क्या ख़ुदा का है दूसरा वाइज़

बे-ख़ता मय-कशों पे चश्म-ए-ग़ज़ब
हश्र होने दे देखना वाइज़

हम हैं क़हत-ए-शराब से बीमार
किस मरज़ की है तू दवा वाइज़

रह चुका मय-कदे में सारी उम्र
कभी मय-ख़ाने में भी आ वाइज़

हज्व-ए-मय कर रहा था मिम्बर पर
हम जो पहुँचे तो पी गया वाइज़

दुख़्त-ए-रज़ को बुरा मिरे आगे
फिर न कहना कभी सुना वाइज़

आज करता हूँ वस्फ़-ए-मय मैं 'अमीर'
देखूँ कहता है इस में क्या वाइज़