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चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद | शाही शायरी
chehra-e-subh nazar aaya ruKH-e-sham ke baad

ग़ज़ल

चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद
सब को पहचान लिया गर्दिश-ए-अय्याम के बाद

मिल गई राह-ए-यक़ीं मंज़िल-ए-औहाम के बाद
जल्वे ही जल्वे नज़र आए दर-ओ-बाम के बाद

चाहिए अहल-ए-मोहब्बत को कि दीवाना बनें
कोई इल्ज़ाम न आएगा इस इल्ज़ाम के बाद

इम्तिहान-ए-तलब-ए-ख़ाम लिया साक़ी ने
जाम-ए-लब-रेज़ दिया दुर्द-ए-तह-ए-जाम के बाद

हाए क्या चीज़ है ये लुत्फ़-ए-शिकस्ता-पाई
हौसले और बढ़े कोशिश-ए-नाकाम के बाद

ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
राह-रौ और भी थक जाता है आराम के बाद