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बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के | शाही शायरी
bujha diye hain KHud apne hathon mohabbaton ke diye jala ke

ग़ज़ल

बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के

साहिर लुधियानवी

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बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के
मिरी वफ़ा ने उजाड़ दी हैं उमीद की बस्तियाँ बसा के

तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
न दिल को मालूम है न हम को जिएँगे कैसे तुझे भुला के

कभी मिलेंगे जो रास्ते में तो मुँह फिरा कर पलट पड़ेंगे
कहीं सुनेंगे जो नाम तेरा तो चुप रहेंगे नज़र झुका के

न सोचने पर भी सोचती हूँ कि ज़िंदगानी में क्या रहेगा
तिरी तमन्ना को दफ़्न कर के तिरे ख़यालों से दूर जा के