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बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था | शाही शायरी
bismil ke taDapne ki adaon mein nasha tha

ग़ज़ल

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आदिल मंसूरी

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बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था
मैं हाथ में तलवार लिए झूम रहा था

घूँघट में मिरे ख़्वाब की ताबीर छुपी थी
मेहंदी से हथेली में मिरा नाम लिखा था

लब थे कि किसी प्याली के होंटों पे झुके थे
और हाथ कहीं गर्दन-ए-मीना में पड़ा था

हम्माम के आईने में शब डूब रही थी
सिगरेट से नए दिन का धुआँ फैल रहा था

दरिया के किनारे पे मिरी लाश पड़ी थी
और पानी की तह में वो मुझे ढूँढ रहा था

मालूम नहीं फिर वो कहाँ छुप गया 'आदिल'
साया सा कोई लम्स की सरहद पे मिला था