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बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था | शाही शायरी
bikhar gaya hai jo moti pirone wala tha

ग़ज़ल

बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था

जमाल एहसानी

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बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
वो हो रहा है यहाँ जो न होने वाला था

और अब ये चाहता हूँ कोई ग़म बटाए मिरा
मैं अपनी मिट्टी कभी आप ढोने वाला था

तिरे न आने से दिल भी नहीं दुखा शायद
वगर्ना क्या मैं सर-ए-शाम सोने वाला था

मिला न था प बिछड़ने का ग़म न था मुझ को
जला नहीं था मगर राख होने वाला था

हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में
पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था