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बीते रिश्ते तलाश करती है | शाही शायरी
bite rishte talash karti hai

ग़ज़ल

बीते रिश्ते तलाश करती है

गुलज़ार

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बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है

जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है

अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है

एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है

बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है