EN اردو
बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा | शाही शायरी
barbaad-e-tamanna pe itab aur ziyaada

ग़ज़ल

बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा

असरार-उल-हक़ मजाज़

;

बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा
हाँ मेरी मोहब्बत का जवाब और ज़ियादा

रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
होना है अभी मुझ को ख़राब और ज़ियादा

आवारा ओ मजनूँ ही पे मौक़ूफ़ नहीं कुछ
मिलने हैं अभी मुझ को ख़िताब और ज़ियादा

उट्ठेंगे अभी और भी तूफ़ाँ मिरे दिल से
देखूँगा अभी इश्क़ के ख़्वाब और ज़ियादा

टपकेगा लहू और मिरे दीदा-ए-तर से
धड़केगा दिल-ए-ख़ाना-ख़राब और ज़ियादा

होगी मिरी बातों से उन्हें और भी हैरत
आएगा उन्हें मुझ से हिजाब और ज़ियादा

उसे मुतरिब-ए-बेबाक कोई और भी नग़्मा
ऐ साक़ी-ए-फ़य्याज़ शराब और ज़ियादा