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बहुत कुछ भूल हो गई भूलने का 'शाद' सुन आया | शाही शायरी
bahut kuchh bhul ho gai bhulne ka shad sun aaya

ग़ज़ल

बहुत कुछ भूल हो गई भूलने का 'शाद' सुन आया

शाद अज़ीमाबादी

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बहुत कुछ भूल हो गई भूलने का 'शाद' सुन आया
मिरी जाँ ग़म अबस है झिड़कियाँ सुनने का दिन आया

ज़रूर उस ने किया क़ासिद से वा'दा अपने आने का
गया था मुज़्तरिब याँ से वहाँ से मुतमइन आया

दिल-ए-सद-पारा से निस्बत नहीं ज़िन्हार ऐ बुलबुल
चमन में जा के आशिक़ पतियाँ फूलों की गिन आया

बड़ी अज़्मत से ख़ुद साक़ी ने जा कर पेशवाई की
शराबी कोई मय-ख़ाना के अंदर जब मुसिन आया

चलो वाइ'ज़ से हरगिज़ कुछ न बोलो चुप रहो रिंदो
हुआ जोश-ए-ग़ज़ब या सर पे उस नादाँ के जिन आया

मरीज़-ए-ग़म की सेहत की ख़बर अल्लाह सुनवाये
गया जो पास उस के 'शाद' वो फिर मुतमइन आया