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बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है | शाही शायरी
badan mein jaise lahu taziyana ho gaya hai

ग़ज़ल

बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है

चमक रहा है उफ़ुक़ तक ग़ुबार-ए-तीरा-शबी
कोई चराग़ सफ़र पर रवाना हो गया है

हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी
हवा-ए-ताज़ा का झोंका बहाना हो गया है

ग़रज़ कि पूछते क्या हो मआल-ए-सोख़्तगाँ
तमाम जलना जलाना फ़साना हो गया है

फ़ज़ा-ए-शौक़ में उस की बिसात ही क्या थी
परिंद अपने परों का निशाना हो गया है

किसी ने देखे हैं पतझड़ में फूल खिलते हुए
दिल अपनी ख़ुश-नज़री में दिवाना हो गया है